Neeraj Chopra: नीरज चोपड़ा की ये 8 आदतें बदल सकती है आपकी जिंदगी, जरूर अपनाएं

ओलंपिक में भारत ने पहली बार ट्रैक एंड फील्ड में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा है. देशवासियों का यह सपना 23 साल के जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने सच कर दिखाया है. गोल्डन बॉय के इस कारनामे पर आज पूरे देश को नाज है और अब उन पर जमकर ईनामों की बारिश हो रही है. आइए आज आपको नीरज चोपड़ा की 8 ऐसी क्वीलिटीज बताते हैं जिन्हें यदि आप अपने जीवन में उतार लें तो निसंदेह आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा.नीरज चोपड़ा की ये आदतें बदल सकती है जिंदगी

भाषा या बैकग्राउंड बाधा नहीं– अक्सर छोटे बैकग्राउंड या भाषा की वजह से लोग पहले ही अपनी कामयाबी का स्तर तय कर लेते हैं. नीरज चोपड़ा ने इसे बिल्कुल गलत साबित करके दिखाया है. सक्सेस कभी इंसान के बैकग्राउंड या भाषा के बारे में नहीं पूछती है. सक्सेस सिर्फ आपके हार्ड वर्क को देखती है. नीरज चोपड़ा पानीपत के एक छोटे से गांव खंडरा से ताल्लुक रखते हैं. आजकल के नौजवानों की तरह वो फर्राटेदार इंग्लिश भी नहीं बोलते हैं. फिर भी कामयाबी के पायदान पर आज वो सबसे ऊपर नजर आते हैं.

नीरज चोपड़ा की ये आदतें बदल सकती है जिंदगी

कम्फर्ट जोन से बाहर निकलें– बचपन में नीरज चोपड़ा का वजन बहुत ज्यादा था. जब वह कुर्ता पहनकर बाहर निकलते थे  तो लोग उन्हें मोटा कहकर चिढ़ाने लग जाते थे. यही एक बात नीरज को चुभ गई और उन्होंने कम्फर्ट जोन से बाहर आकर खुद को ट्रांसफॉर्म करने का फैसला कर लिया. फिटनेस पर काम करते-करते नीरज के हाथ में जेवलिन आ गया और आगे चलकर यही साधारण सा लड़का देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर आया.

Photo: Neeraj Chopra Officialsनीरज चोपड़ा की ये आदतें बदल सकती है जिंदगी

कुछ नया करने का जुनून– भारत ने ओलंपिक में इससे पहले हॉकी, कुश्ती, शूटिंग और बॉक्सिंग जैसे खेलों में मेडल जीते थे. लेकिन नीरज एक ऐसे खेल में गोल्ड मेडल लेकर आए जिसके बारे में इससे पहले ज्यादातर देशवासी जानते तक नहीं थे. यहां तक कि खुद नीरज के घर, गांव में किसी ने पहले जेवलिन में हाथ नहीं आजमाया था. नीरज भी साइकिलिंग, बास्केट बॉल और जिम में वेट लिफ्टिंग करते थे, लेकिन उन्हें अपना भविष्य एक बिल्कुल नए खेल में नजर आया जहां कदम रखते ही उन पर मेडल्स की बारिश होने लगी.

नीरज चोपड़ा की ये आदतें बदल सकती है जिंदगी

फेलियर– कामयाबी की राह में फेलियर इंसान के लिए बड़ा टर्निंग प्वॉइंट साबित हो सकते हैं. बस आपको हार के डर से पीछे नहीं हटना चाहिए. 2012 में बास्केट बॉल खेलते-खेलते नीरज चोपड़ा की कलाई टूट गई थी. ओलंपिक से 2 साल पहले उनकी एल्बो की सर्जरी हुई. लेकिन उनके हाथ से जेवलिन कभी नहीं छूटा और उनके निरंतर प्रयास से भारत की झोली में कभी कॉमनवेल्थ तो कभी ओलंपिक में गोल्ड आते रहे.

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चुनौतियों से ना घबराएं– नीरज की जिंदगी की किताब पढ़ने से यह पता चलता है कि उन्होंने जीवन में कितनी चुनौतियों का सामना किया है. वजन कम करने के बाद खुद को एक फिट एथलीट बनाना उनके लिए पहली चुनौती थी. छोटे गांव से आए लड़के का बेस्ट थ्रोअर बनना दूसरी बड़ी चुनौती थी. नीरज के लिए चुनौतियां आज भी कम नहीं हुई हैं. अब उनके सामने 90 मीटर के बैरियर को तोड़ना एक नई चुनौती है जिस पर वह खूब पसीना बहा रहे हैं.