जम्मू-कश्मीर के पुंछ में सोमवार को आतंकी हमले में जेसीओ समेत 5 सैनिक शहीद हो गए। हमलावर आतंकी अंधेरे का फायदा उठाकर भाग निकले। इससे पहले 3 मई 2020 को एक आतंकी हमले में 5 सैनिक शहीद हुए थे। उसके बाद एक साथ इतनी शहादत नहीं हुई थीं। एलओसी पर सख्ती की वजह से सेना को घुसपैठ रोकने में कामयाबी मिली है। दूसरी ओर, घाटी में सेना ने संदिग्ध युवाओं के परिवार के साथ मिलकर नए आतंकियों की भर्ती पर भी लगभग लगाम लगा रखी है।
कई युवाओं को मुख्यधारा में लाया गया है। इन दो वजहों से आतंकी संगठनों के पास स्थायी लड़ाकों की कमी हो गई है। इसलिए पाकिस्तान से संचालित होने वाले आतंकी संगठनों ने पार्टटाइम आतंकियों से हमले कराने का तरीका अपनाया है। यह बात मिलिट्री इंटेलिजेंस एजेंसियों को घाटी में बैठे हैंडलरों को पाकिस्तान से भेजे गए संदेशों को इंटरसेप्ट करने से पता चली है। ये संदेश घाटी में स्लीपर सेल्स के हैंडलर्स को आते हैं।
पिछले दिनों नागरिकों पर जो हमले हुए, उनमें शामिल हमलावर नए थे। उनका पिछला रिकॉर्ड नहीं है। आतंकी संगठन इन्हें मोटी रकम देकर सिर्फ एक हमले में इस्तेमाल कर रहे हैं। उसके बाद आतंकी संगठन इनसे नाता तोड़ देते हैं, इसलिए इन्हें ट्रेस करने में मुश्किल हो रही है। सुरक्षाबलों ने ऐसी 10 घटनाओं की लिस्ट तैयार की है।
केंद्र सरकार ने कश्मीरी विस्थापितों और पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों को 41 लाख से ज्यादा निवास प्रमाणपत्र जारी कर दिए हैं। इससे गैर-मुस्लिम काफी उत्साहित थे। यही पाकिस्तान में बैठे आतंकियों की बौखलाहट की पहली बड़ी वजह है। इसलिए न सिर्फ हिंदुओं, बल्कि सिखों काे भी निशाना बनाया जा रहा है। ताकि, इनमें दशहत फैले। नागरिक आतंकियों के सॉफ्ट टारगेट हैं।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, घाटी में हिंसा में बढ़ोत्तरी दो घटनाक्रमों के बीच हुई है। पहला- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की विकास परियोजनाओं को देखने के लिए देशभर से 160 से अधिक पत्रकारों ने दौरा किया था। इसके अलावा ‘आउटरीच प्रोग्राम’ के तहत केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों के लगातार दौरे हो रहे हैं। दूसरा- अक्टूबर के आखिर में गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर जा रहे हैं।
पिछले हफ्ते मखनलाल बिंद्रू जैसे गैर-मुस्लिमों पर हुए हमले के दोषियों की तलाश में सुरक्षाबलों ने 4 दिन में एक हजार से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया है। अकेले श्रीनगर में 100 से ज्यादा लोग हिरासत में लिए गए हैं।5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद-370 हटाया गया। उसके बाद से 5 अगस्त 2021 तक एक भी हिंदू परिवार का विस्थापन नहीं हुआ। जम्मू-कश्मीर प्रशासन इसे अपनी उपलब्धि बता रहा था। यह बात आतंकियों को लगातार परेशान कर रही थी। इसलिए, उन्होंने दशहत फैलाने के लिए गैर-मुस्लिमों पर हमले शुरू किए हैं।