94 साल के हुए आडवाणी:

94 साल के हुए आडवाणी:

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी 94 साल के हो गए। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सोमवार सुबह आडवाणी के घर पहुंचे और उनकी पसंद का चॉकलेट केक कटवाकर जन्मदिन की बधाई दी। उनके आवास में मौके पर मौजूद एक स्टाफ के मुताबिक करीब 25 मिनट तक पीएम आडवाणी के साथ रहे। इस दौरान उन्होंने पुराने दिनों के किस्से सुनाए। उन्होंने आडवाणी को उन दिनों की याद दिलाई जब दोनों साथ थे।

जाहिर है, 1990 की रथयात्रा का जिक्र तो होना ही था। कैसे रणनीति बनती थी? कैसे पूरा देश उस समय राममय हो गया था? उन्होंने उस भीड़ का भी जिक्र किया जो सोमनाथ मंदिर के बाहर आडवाणी के इंतजार में खड़ी थी। पीएम बोल रहे थे, बीच-बीच में वेंकैया नायडू भी कुछ बातों के साथ दखल देते, लेकिन आडवाणी चुप थे। वे एक भी शब्द नहीं बोले, हालांकि उनके हाव-भाव से लग रहा था कि उन्हें अब भी बहुत सारी चीजें याद हैं। आखिर में मोदी ने हाथ जोड़े तो आडवाणी ने बस एक शब्द कहा-धन्यवाद।

दरअसल पिछले कुछ सालों से आडवाणी बेहद कम बोल रहे हैं। ज्यादातर मौकों पर वे चुप ही रहते हैं। इससे पहले रविवार को भाजपा की नेशनल एग्जिक्यूटिव मीटिंग में वे वर्चुअली शामिल हुए। उनके एक करीबी स्टाफ के मुताबिक दोपहर 2:00 से 3:00 बजे तक वे मीटिंग में रहे, लेकिन ऑन द रिकॉर्ड या ऑफ द रिकॉर्ड उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला।

इसी साल अक्टूबर में भाजपा के एक नेता ने फैब इंडिया द्वारा एक उर्दू टैगलाइन इस्तेमाल करने के खिलाफ बयान दिया था। आडवाणी के एक करीबी ने बताया कि हमने इस मामले को लेकर उनकी राय जाननी चाही। करीब एक-सवा घंटे तक इस मामले को उनके सामने बयां किया। आडवाणी जी चुप रहे। जब हमें लगा अब वे नहीं बोलेंगे, तो धीमी आवाज में एक लाइन सुनाई पड़ी। आडवाणी जी ने बस इतना कहा, ‘पार्टी ही नहीं बल्कि पूरे समाज में ही सहनशीलता नहीं बची है।’आडवाणी 16वीं लोकसभा, यानी 2014-2019 के कामकाजी 321 दिनों में 296 दिन संसद में मौजूद रहे। इस दौरान वे ज्यादातर चुप ही रहे। महज 5 बार बोले। वह भी न के बराबर। इनमें से 2 मौके थे- स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के चुनाव के। इस दौरान आडवाणी ने भाषण तो दिए, लेकिन ‘मैं इस प्रस्ताव का समर्थन करता हूं’ कहकर चुप हो गए। हालांकि 6 जून 2009 को जब लोकसभा में मीरा कुमार स्पीकर बनीं, तब आडवाणी जी ने अपने भाषण में करीब 450 शब्द कहे थे।

साल 2009 से 2014 के बीच आडवाणी ने 42 बहसों में हिस्सा लिया। करीब 36,000 शब्द बोले। 8 अगस्त 2012 को असम में बढ़ती घुसपैठ के खिलाफ भाजपा ने स्थगन प्रस्ताव रखा था। भाजपा विपक्ष में थी और विपक्ष की बहस का नेतृत्व आडवाणी कर रहे थे। तब आडवाणी का भाषण तकरीबन 5000 शब्दों का था। इस दौरान सत्ता पक्ष की तरफ से 50 बार अवरोध भी पैदा किए गए, भाजपा का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया गया, लेकिन आडवाणी को जो बोलना थे वे बोले।

वहीं 8 जनवरी, 2019 को मोदी सरकार सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल पेश कर रही थी। यह उससे सीधा जोड़ने वाला मुद्दा था। जिस दिन यह बिल लोकसभा में पेश किया गया और बहस के बाद सदन ने इसे पारित किया, लालकृष्ण आडवाणी भी सभा में उपस्थित थे। बिल पर चर्चा हुई, लेकिन आडवाणी चुप रहे।

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