राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किए जाने के बाद से जनप्रतिनिधित्व कानून को लेकर बहस छिड़ गई है। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई है। ‘मोदी सरनेम’ वाले मानहानि मामले में दो साल की कैद की सजा पाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई है। राहुल गांधी पर यह कार्रवाई जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 Representatives of People’s Act के तहत की गई। राहुल गांधी पर हुए इस एक्शन के बाद से इस कानून पर बहस शुरू हो गई है। 70 साल से ज्यादा पुराने जनप्रतिनिधित्व कानून के एक सेक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीएलाई तक दायर कर दी गई है। इस याचिका के जरिए Representatives of People’s Act के सेक्शन 8 (3) को चुनौती दी गई है। साथ ही मांग की गई है कि इस सेक्शन को रद्द किया जाए। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल राहुल गांधी पर हुई कार्रवाई को लोकतंत्र की हत्या बता चुके हैं। इस मामले में लीगल एक्सपर्ट की राय भी अलग-अलग है।जनप्रतिनिधित्व कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि, धारा 8(3) के तहत प्रतिनिधियों को दोषी पाए जाने के बाद उन्हें अपने आप अयोग्य घोषित नहीं किया जाना चाहिए। PLI में कहा गया कि चुने हुए प्रतिनिधि को सजा का एलान होते ही उनका जन प्रतिनिधित्व यानी सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाना असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल PIL में कहा गया है कि अधिनियम के चैप्टर-3 के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय आरोपी के नेचर, गंभीरता, भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई कर क्या फैसला देती है यह तो आने वाला वक्त बताएगा। फिलहाल इस कार्रवाई और नियम पर बहस जारी है।