अफगानिस्तान में तालिबानी कब्जे को अभी महज 4 दिन ही हुए हैं और इस हुकूमत के खिलाफ बगावत शुरू हो गई है। तालिबान विरोधी फौजें पंजशीर में इकट्ठा हो रही है। इनमें अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह, अफगानिस्तान के वॉर लॉर्ड कहे जाने वाले जनरल अब्दुल रशीद दोस्तम, अता मोहम्मद नूर के सैनिक और अहमद मसूद की फौजें शामिल हैं।
चारिकार इलाके में कब्जे के अलावा इन विद्रोही फौजों ने पंजशीर में नॉर्दन अलायंस, या यूनाइटेड इस्लामिक फ्रंट का झंडा भी फहरा दिया है। पंजशीर घाटी में 2001 के बाद पहली बार अलायंस का झंडा फहराया गया है।
जलालाबाद में ऐसी ही घटना सामने आई है। यहां लोगों ने तालिबानी हुकूमत के बीच अफगानिस्तान का झंडा लगा दिया, जिसे तालिबान ने हटाकर अपना झंडा लगाने की कोशिश की। इस दौरान लोगों की तालिबानियों से झड़प हो गई और लोगों को डराने के लिए तालिबानियों से फायरिंग कर दी, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई।
जलालाबाद काबुल के पहले तालिबानियों के कब्जे में जाने वाला आखिरी शहर था। यहां लोग सड़कों पर अफगानी झंडे लेकर प्रदर्शन करने लगे और इसके बाद तालिबानियों ने फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद यह प्रदर्शन हल्का पड़ गया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, परवान प्रॉविंस में सालेह की फौजों ने चारिकार इलाके को कब्जा लिया है। अफगानी सैनिकों ने पंजशीर के बाहरी इलाकों में पाकिस्तान समर्थित तालिबानियों पर हमला किया और उन्हें वहां से हटा दिया। ये नॉर्दन अलायंस की बड़ी कामयाबी कही जा सकती है, क्योंकि चारिकार काबुल को उत्तरी अफगानिस्तान के सबसे बड़े शहर मजार-ए-शरीफ को जोड़ता है।
रिपोर्ट्स में ये भी कहा जा रहा है कि अफगान सरकार के वफादार सैनिक मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम और अता मोहम्मद नूर की अगुआई में सालेह की फौजों के साथ जुड़ रहे हैं और अब इनका इरादा पूरे पंजशीर इलाके पर कब्जे का है। चारिकार पर कब्जे के दौरान सालेह की फौजों ने पंजशीर की ओर से हमला किया और दोस्तम की फौजों ने उत्तर की ओर से हमला किया।
पंजशीर अकेला ऐसा प्रांत है, जो तालिबान के कब्जे से बाहर है। रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि सालेह और दोस्तम की फौजों के अलावा अहमद मसूद के विद्रोही भी तालिबान के खिलाफ खड़े हो गए हैं। अहमद मसूद पूर्व अफगानी नेता अहमद शाह मसूद के बेटे हैं, जिन्हें पंजशीर के शेर के नाम से जाना जाता था। मसूद के विद्रोहियों की ताकत बढ़ रही है।
1996 में जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा था, तब इसी नॉर्दन अलायंस ने उसका विरोध शुरू किया था। इसे कुछ बाहरी देशों का सपोर्ट भी हासिल था और इससे पूर्व तालिबान विरोधी मुजाहिदीन भी जुड़े थे। अफगानिस्तान के पूर्व रक्षा मंत्री अहमद शाह मसूद ने इस अलायंस का नेतृत्व किया था। शुरुआत में इस अलायंस में तजाख ही थे, पर बाद में इससे दूसरे कबीलों के सरदार भी जुड़ गए थे।