विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस पर आई हालिया रिपोर्ट चौंकाने वाली है। ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट- 2021 कहती है, पिछले एक दशक में टीबी से सबसे ज्यादा 15 लाख मौतें 2020 में हुईं। इसकी एक तिहाई यानी 5 लाख मौतें भारत में हुईं।
रिपोर्ट कहती है, 2019 के मुकाबले 2020 में मौत के आंकड़ों में 13 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।इसकी वजह है कोरोना।
WHO के डायरेक्टर जनरल डॉ. टेड्रोस अधानोम गैब्रिएसस का कहना है, दुनियाभर में कोविड के कारण टीबी के मरीजों का इलाज प्रभावित हुआ। इन मरीजों को इलाज नहीं मिल पाया।
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 1 करोड़ लोग टीबी से जूझ रहे हैं। इनमें 11 लाख बच्चे भी शामिल हैं। टीबी के 98 फीसदी मामले ऐसे देशों से हैं जो गरीबी की मार झेल रहे हैं। सबसे ज्यादा मरीज भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में हैं।
WHO ने 2015 से 2020 तक टीबी से होने वाली मौतों को 35 फीसदी तक घटाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया। मौतों में 35 फीसदी की जगह मात्र 9.2 की कमी देखी गई। WHO ने अपनी रिपोर्ट में सरकारों से टीबी के बेहतर इलाज के लिए निवेश करने की सलाह दी है।
रिपोर्ट कहती है, कोरोनाकाल में इलाज न मिलने से मरीजों की मौतों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन नए मामलों में कमी आई है। ड्रॉप्लेट्स से बचाव के लिए मास्क और दूसरी सावधानियों के कारण नए मरीजों की संख्या घटी। 2019 और 2020 के बीच टीबी के मामलों में 41 फीसदी की गिरावट दिखी। वहीं, टीबी के मामलों में इंडोनेशिया में 14%, फिलीपींस में 12% और चीन में 8% की कमी आई।
जसलोक हॉस्पिटल में रेस्पिरेट्री मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. समीर गार्डे कहते हैं, कई बार लक्षणों के आधार कहना मुश्किल होता है कि मरीज टीबी से जूझ रहा है या नहीं। ऐसे में कुछ बेसिक जांचें कराई जाती हैं, जैसे- सीने का एक्सरे, बलगम की जांच। टीबी का इलाज कराने में जितनी देरी होती है उतना ही खतरा बढ़ता है। इलाज में देरी करने या दवा लेने में लापरवाही होने पर दवा बेअसर हो सकती है। इसे मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट टीबी कहते हैं। इसलिए दवाएं न तो रोकें और न ही इसका कोर्स अधूरा छोड़ें।