खुदरा महंगाई के जुलाई के आंकड़े आ गए हैं। पिछले महीने महंगाई दर 5.59% रही। यह पिछले तीन महीने का इसका सबसे निचला स्तर है। इस तरह यह दोबारा रिजर्व बैंक के कंफर्ट जोन में आ गई है। RBI ने इसके लिए 4% से 2% नीचे और इतने ही ऊपर का दायरा तय किया है। इससे पहले यह लगातार दो महीने 6% से ऊपर रही थी।
पिछले महीने खुदरा महंगाई में सालाना और मासिक, दोनों आधार पर कमी आई है। महीने भर पहले यानी जून में खुदरा महंगाई 6.26% रही थी। इस हिसाब से जुलाई में महंगाई 0.74% कम रही है। अगर साल भर पहले की बात करें, तो जुलाई 2020 में खुदरा महंगाई 6.73% रही थी। इसी साल मई में महंगाई दर 6 महीने के सबसे ऊपरी स्तर पर थी।
रॉयटर्स के सर्वे में शामिल 48 अर्थशास्त्रियों ने जुलाई में महंगाई दर घटकर 5.78% पर रहने का अनुमान दिया था। गौरतलब है कि महंगाई में कमी खाने-पीने के सामान सस्ता होने से आई है। इसकी वजह कोविड के चलते सप्लाई चेन में आई रुकावट दूर होना है।
नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) के डेटा के मुताबिक, फूड आइटम्स की महंगाई दर पिछले महीने घटकर 3.96% पर आ गई। जून में यह आंकड़ा 5.15% के लेवल पर था।
इस बीच जून महीने के औद्योगिक उत्पादन के भी आंकड़े आए हैं। सालाना आधार पर इसमें 13.6% का उछाल आया है। आंकड़ा बताता है कि पिछले साल कमजोर बेस का फायदा घट रहा है, क्योंकि मई में ग्रोथ रेट 29.3% रहा था। पिछले साल जून में औद्योगिक उत्पादन दर में 16.6% की गिरावट आई थी।
अगर जून तिमाही की बात करें, तो इस दौरान IIP में सालाना आधार पर 45% का उछाल आया है। 2020 की कोविड प्रभावित पहली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में 35.6% की भारी गिरावट आई थी। इसमें पिछले साल मार्च में 18.7% जबकि अप्रैल में लॉकडाउन के चलते 57.3% की तेज गिरावट आई थी।
राठी का कहना है कि कम महंगाई के बीच रिजर्व बैंक के रेपो रेट को जस के तस रखे जाने से आम लोगों और कंपनियों को खासे लंबे समय तक कम इंटरेस्ट रेट का फायदा मिलता रहेगा।
एमके वेल्थ मैनेजमेंट के रिसर्च हेड डॉ जोसफ थॉमस कहते हैं कि महंगाई में कमी जरूर आई है। लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी उसका दबाव अस्थायी है और यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहेगी। हालांकि इससे पॉलिसी लेवल पर रिजर्व बैंक से महंगाई का दबाव कुछ समय के लिए घट जाएगा।